कबीर दोहे भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत कबीर द्वारा रचित छंदों में लिखे गए उत्तम गीत हैं। ये दोहे अधिकतर हिन्दी भाषा में लिखे गए हैं और संगीतमय भावों से भरे हुए हैं। कबीर जी के दोहे संसार के भेदभाव और जातिवाद के खिलाफ थे और उन्होंने इन दोहों के माध्यम से मनुष्यों को एक समान और उच्चतम जीवन जीने की शिक्षा दी। ये दोहे आज भी हिन्दी साहित्य की महत्त्वपूर्ण धरोहर हैं और भारतीय संस्कृति में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।
Here are a few popular dohas by the Indian mystic and poet Kabir in Hindi:
- चाँदी का गदहा, मिट्टी का सब सोना। संसार दोलों, खोए एक ठोना॥ Translation: A donkey made of silver, everything of mud and clay, The world is unstable, only emptiness stays.
- ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं। मूरख लोग न जानहिं, बाहर ढूंढें महिं॥ Translation: Just as a puppet is in the eye, so is the master within the body. Foolish people don’t realize this and search for him outside.
- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥ Translation: Reading books, the world died. No one became wise. But the one who reads the syllable of love becomes a scholar.
- साधो, संत कहते हैं, भजन करो मन माहीं। काल क्रोध स्थिर न रहे, सब धर्मों में सब सब झूठी माहीं॥ Translation: Saints and sages say, worship with all your heart. Time and anger do not remain stable, all religions are full of lies.
One interesting fact about Kabir’s dohas is that they were written in a form of Hindi which was accessible to the common people, as opposed to the more scholarly and Sanskritized language of the time. Kabir’s use of simple language and imagery, and his focus on the themes of spirituality, morality, and social justice, made his dohas immensely popular among people of all castes and religions in medieval India. Even today, Kabir’s dohas continue to be widely read and recited by people across India and South Asia, and have inspired many cultural and artistic expressions.
कबीर दास के प्रसिध्द दोहे – Kabir Das ke Prasidhd Dohe
जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होय।
धीरे धीरे रे मन मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आएं फल होय
जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
बोलीं एक अमोल है,जो कोई बोलैं जान।
हिये तराजू तौल के,तब मुख बाहर आन।
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल देह सुभाय।
जब गुण को ग्राहक मिले,तब गुण लाख बिचाय।
जब गुण को ग्राहक नहीं,तब कौड़ी बदले जाय।
हाड़ जले ज्यों लकडी, केस जले ज्यों घास।
सब तन जलता देख कर,भया कबिरा उदास।
कबिर तन पंछी भया, जहां मन तहा उड़ जाय।
जो जैसी संगति करै सो तैसा ही फल पाय।
माया मरी न मन मरा,मरि मरि गया शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, यो कह गए संत कबीर।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपने, मुझसे बुरा न कोय।
झूठे को झूठा मिले,दूना बढ़े स्नेह।
झूठे को सांचा मिलें,तो ही दूर नेह
कबीर दास के 10 दोहे – Kabir Das ke 10 Dohe in Hindi
दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दुख काहे को होय।।sant kabir ke dohe
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
कस्तूरी कुंडली बसै, मिरग ढूंढई बन माहि।
ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखे नहि।।कबीरा
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।
साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके ह्रदय साच है,ताके ह्रदय आप।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहें,थोथा देई उडाय।
कल करे सो आज कर,आज करे सो अब।
पल में परलै होयगी,बहुरि करोगे कब।
रूखा सूखा खाई के, ठंडा पानी पीय।
देखि पराई चूपडी,मत ललचावै जीव।।
आवत गाली एक है,उलटत होई अनेक।
कहि रहिम मत उलटिए, वहीं एक की एककबीरा